1947 से 1980 तक प्रधानमंत्री पद का इतिहास*

 


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1947 से 2017 तक, प्रधानमंत्री के इस पद पर कुल 14 पदाधिकारी अपनी सेवा दे चुके हैं। और यदि गुलज़ारीलाल नन्दा को भी गिनती में शामिल किया जाए, जो कि दो बार कार्यवाही प्रधानमंत्री के रूप में अल्पकाल हेतु अपनी सेवा दे चुके हैं, तो यह आंकड़ा 15 तक पहुँचता है। 1947 के बाद के कुछ दशकों तक भारतीय राजनैतिक मानचित्र पर कांग्रेस पार्टी का  लगभग चुनौती विहीन, निरंतर राज रहा। इस काल के दौरान भारत ने कांग्रेस के नेतृत्व में कई मज़बूत सरकारों का राज देखा, जिनका नेतृत्व कई शक्तिशाली व्यक्तित्व के प्रधानमंत्रीगणों ने किया। भारत के पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू थे, जिन्होंने 15 अगस्त 1947 में भारत के स्वाधीनता समारोह के साथ अपने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्होंने अविरल 17 वर्षों तक भारत को अपनी सेवायें दीं। वे 3 पूर्ण और एक खण्डित कार्यकाल तक इस पद पर विराजमान रहे। उनका कार्यकाल, मई 1964 में उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। वे अब तक के सबसे लंबे समय तक शासन संभालने वाले प्रधानमंत्री हैं। जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद, उन्हीं के पार्टी के लाल बहादुर शास्त्री इस पद पर विद्यमान हुए, जिनके लघुकालिक 19 महीने के कार्यकाल में भारत ने वर्ष 1965 का कश्मीर युद्ध और उसमें पाकिस्तान की पराजय देखी। युद्ध के पश्चात्, ताशकंद के शांति-समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद ताशकंद में ही उनकी अकारण व अकस्मात् मृत्यु हो गयी। शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री पद पर जवहार लाल नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी इस पद पर देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर निर्वाचित हुईं। इंदिरा गांधी के पहले दो कार्यकाल 11 वर्षों तक चले, जिसमें उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण और पूर्व राजपरिवारों को मिलने वाले शाही भत्ते और राजकीय उपाधियों की समाप्ती, जैसे कठोर कदम उठाये। साथ ही पाकिस्तान से 1971 का युद्ध और बांग्लादेश की स्थापना, जनमत-संग्रह द्वारा सिक्किम का भारत में अभिगमन, पोखरण में भारत के पहले परमाणु परीक्षण जैसे ऐतिहासिक घटनाएँ भी इंदिरा गांधी के इस शासनकाल में हुईं, परंतु इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद, 1975 से 1977 तक का कुख्यात आपातकाल भी इंदिरा गांधी ने ही लगवाया था। यह समय सरकार द्वारा आंतरिक उथल-पुथल और अराजकता को नियंत्रित करने हेतु लोकतांत्रिक नागरिक अधिकारों की समाप्ती और ‘राजनैतिक विपक्ष के दमन’ के लिए कुख्यात रहा।
 इस आपातकाल के कारण, इंदिरा गांधी के खिलाफ उठी विरोध की लहर के कारण आपातकाल के समापन के बाद 1977 के चुनावों में विपक्ष के तमाम राजनैतिक दलों ने संगठित रूप से जनता पार्टी के छत्र के नीचे कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस को बुरी तरह पराजित करने में सफल रही। जनता पार्टी की गठबंधन के तरफ से मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार अत्यंत विस्तृत एवं कई विपरीत विचारधाराओं की राजनीतिक दलों द्वारा रचित थी, जिनका एकजुट होकर, विभिन्न राजनैतिक निर्णयों पर एकमत ना हो पाने से समन्वय बनाकर रखना बहुत कठिन था। अंततः ढाई वर्षों के शासन के बाद, 28 जुलाई 1979 को मोरारजी के इस्ती़फे के साथ ही उनकी सरकार गिर गई। 11 तत्पश्चात्, क्षणिक समय के लिए, मोरारजी की सरकार में उपप्रधानमन्त्री रहे, चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से, बहुमत सिद्ध किया और प्रधानमन्त्री की शपथ ली। उनका कार्यकाल केवल 5 महीनों तक चला (जुलाई 1979 से जनवरी 1980)। उन्हें भी घटक दलों के साथ समन्वय बना पाना कठिन रहा, अंततः कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण उनहोंने भी बहुमत खो दिया, और उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।12 इन तकरीबन 3 वर्षों की सत्ता से बेदखली के बाद, कांग्रेस पुनः भरी बहुमत के साथ सत्ता में आई, और इंदिरा गांधी को अपने दुसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित किया गया। इस दौरान, उनके द्वारा की गयी सबसे कठोर एवं विवादस्पद कदम था ऑपरेशन ब्लू स्टार, जिसे अमृतसर के हरिमंदिर साहिब में छुपे हुए खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ किया गया था। अंत्यतः,उनका कार्यकाल, 31 दिसंबर 1984 की सुबह को उनकी हत्या के साथ समाप्त हो गया।