पहले स्त्री का अस्तित्व चूल्हा और बच्चों तक ही सीमित था। वे असंख्य रुढ़ी-परंपरा की सीमा के इर्द-गिर्द ही थीं। फिर भी रानी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गांधी, सावित्रीबाई फुले, डॉ. आनंदी जोशी जैसी कई महिलाओं ने उस समय में उन पर अनेक बंधनों की उपेक्षा पर सफल होने हेतु कदम उठाए।
आज समय बदल गया है। स्त्री ने खुद को हर क्षेत्र में सिद्ध किया है, परंतु यह परिस्थिति शहर तक ही मर्यादित है। आज के इस आधुनिक समय में भी दुर्गम भाग की आदिवासी महिलाओं की परिस्थिति आज भी बदली नहीं है। अनेक सामाजिक संस्थाएं इस पर काम करती हुई दिखाई दे रही हैं। स्त्री जैसे कल असुरक्षित थी वो आज भी है। समाज की मानसिकता और स्त्री की तरफ देखने का दृष्टिकोण बदल नहीं पा रहा है, इसलिए जब तक स्त्री की ओर देखने का दृष्टिकोण नहीं बदलता है तब तक हम महिलाएं असुरक्षित ही रहेंगी फिर चाहे जमाना कितना भी क्यों न आधुनिक हो जाए।
आज की स्त्री कार्यक्षम है, स्वतः व्यवसाय, नौकरी करती है परंतु रोज कहीं ना कहीं महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। कितनी घटनाएं तो ऐसी होती हैं कि जिसमें उन्हें अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। महिलाओं पर होनेवाले अत्याचार अगर कम करने हैं तो समाज को उसकी तरफ देखने का नजरिया बदलना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस षुरुष प्रधान समाज में भी महिलाओं ने खुद को साबित करके दिखाया है। आज महिलाओं ने हर क्षेत्र में जैसे कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापिका, विधायक, वकील, सांसद व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर अपनी अलग पहचान निर्माण की है।
आज हमें समान अधिकार है। महिलाओं में ऐसी एक शक्ति है कि नया इतिहास का निर्माण कर सकती हैं। इतिहास, समाज को आज नए से निर्माण करने की आवश्यकता है तो ही आज की स्त्री सही मायने में मुक्त संचार कर सकती है।
आज की स्त्री हैकार्यक्षम*