काली बदसूरत लड़कियाँ…
अब तो चाहकर भी प्रेम
पर कविताएँ लिखते वक़्त
किसी गोरी-सुंदर लड़की
का ख्याल नहीं आता।
पहले तो लगा शायद माँ
के संघर्षों से उभरे उनके
गेहूंए रंग इसकी वजह होंगे
किंतु उनसे दूर वीराने में
जाकर भी कलम नें मेरे
विचारों के समक्ष घुटने
टेक दिये।
मुझे उन काली, बदसूरत
और बेबस लड़कियों से
सहानुभूति नहीं बल्कि
क्रांति की बू आने लगी है।
लगता है जैसे
किसी भी क्षण वो
हथियारों से लैस होकर
मांगेंगी अपनें ऊपर हुए
क्रूरतम अत्याचारों एवं
नफरतों का हिसाब।