“प्रेम का अविष्कार किसने किया”
विश्व इतिहास पढ़ते हुए जब मुझे ये मालूम पड़ा कि भारत को समुद्री मार्ग से वास्को डि गामा नें खोजा था तो मेरे भीतर इस बात को जानने की तीव्र इच्छा विकसित हो गई कि आखिर “प्रेम” की खोज या अविष्कार किसने किया होगा ?
बहुत हाथ-पैर मारा पर कोई भी एक नाम सामने नहीं आया।
मुझे इसका उत्तर चाहिए ही था, क्यूँ ये नहीं पता ?
शायद मेरी और प्रेम की आपस में कभी बनती नहीं यही सबसे बड़ी वजह होगी। जब दिनभर हाथ-पैर मारने के बाद कोई परिणाम नहीं आया और मैं थक कर बिस्तर पर लोट गया तो हमेशा की तरह आँखें मूंदनें पर उसका चेहरा दिमाग़ में घूमनें लगा। अचानक जैसे मिर्गी का दौरा पड़ा हो मैं उठकर बैठ गया और तुरंत उसके पास फोन घुमा दिया। फोन थोड़ी देर से उठा, अचानक साल भर बाद ये देरी लाजमी थी।
फोन उठते ही मैं कुछ बोल पाता हमेशा की तरह उधर से पहले आवाज आई, “अरे भई वाह, आज साल भर बाद अचानक से लेखक साब नें हमें फोन किया, यार किस्मत खुल गई हमारी”। मैंने उसके जानबूझकर बुने गए तंज को नजरअंदाज करते हुए सीधे अपना सवाल दाग़ दिया, ” क्या तुम जानती हो की प्रेम का अविष्कार किसने किया था” ?
उधर से जवाब आया “नहीं क्यूँ” ?
मैंने कहा “नहीं मुझे बस ये जानना था की आखिर वो शख्स है कौन जिसने इस प्रेम का अविष्कार किया है” उधर से बहुत ही नर्म लहजे में एक सवाल मेरी तरफ आया ” क्या तुमनें कभी किसी से प्रेम किया है” ?
मैंने उत्तर दिया “है नहीं था, पर इससे क्या”? इसबार उसनें अपनें उस नर्म लहजे में एक शरारत भरी मुस्कुराहट घोलते हुए जवाब दिया ” मियाँ, जिसनें भी प्रेम किया होगा वही प्रेम का अविष्कारक होगा” मैंने थोड़ी उलझन भरी आवाज में तुरंत पूछा “आखिर ये कैसे, मैं समझा नहीं”? उसनें अपनें लहजे को बरकार रखते हुए जवाब दिया ” जनाब, प्रेम महसूस किये जाने वाला तत्व है। मैं तो ये कहुँगी कि आप के ज़हन में सवाल ही गलत उठा है। प्रेम का अविष्कार किसनें पहले किया इसके बजाय अगर आप अपनें आप से खुद ये सवाल पूछते की प्रेम को महसूस पहले किसनें किया तब इसका उत्तर जानने के लिए आपको किसी के पास जाना ही ना पड़ता और ये स्वयं ही मालूम पड़ जाता की इसके होने का कोई निश्चित काल या करने वाला कोई निश्चित व्यक्ति नहीं बल्कि ये हर वक़्त हर दौर में हो सकने वाले दो लोगों के मध्य में से किसी एक के सबसे पहले महसूस किये जाने वाली भावना है जिसे हम प्रेम का अविष्कार हो जाना या खोजा जाना कह सकते है”। मैं उसके द्वारा किये जा रहे प्रेम कि व्याख्या को सुनने में पूर्णतः तल्लीन हो चुका था।
होश तो मेरा तब उड़ा जब उसनें व्याख्या खत्म करने के बाद मुझसे एक सवाल पूछ लिया। फिर से तंज भरे लहजे में “तो ये था मेरी तरफ से आपके प्रश्न का निवारण करनें के लिए बनाया गया जवाब, लेकिन जनाब इस जवाब से अब यहाँ पर आपसे एक प्रश्न बनता है, और वो ये है कि क्या साल भर पहले हम जिस रिश्ते में थे उस रिश्ते में आप शामिल थे ही नहीं जो आज प्रेम के अविष्कार या उसकी परिभाषा जानने की आवश्यकता पड़ गई”? जैसे ही उसने ये सवाल मुझसे पूछा, लगा जैसे किसी नें मेरे ऊपर वज्रपात कर दिया हो, मेरे भीतर खुद को लेकर धोखेबाज़, गलत और स्वार्थी वाली भावना जागृत होने लगी थी, जुबान लकवाग्रस्त हो चुकी था। स्थिति ये थी की अब मैं खुद को हमारे उस रिश्ते के खत्म होने के लिए असल जिम्मेदार समझ रहा था,
और खुद के ऊपर ये सोचकर शर्म महसूस कर रहा था कि आजतक मैंने हमारे रिश्ते में होने वाली तमाम उठा-पटक के लिए सिर्फ उसे ही दोषी समझा जबकि असलियत में रिश्ते को न समेट पाने का सर्वाधिक गुनहगार मैं था”….