सच बोलने की आवश्यकता (विचार)
कमाल का देश हैं हमारा, कितनी विशाल और सभ्य संस्कृति हैं हमारी। इतनी सभ्य की आज हमें यहाँ पर सच बोलने का अधिकार भी कोई अधिकार नहीं हैं।
आखिर किस हक़ से हम अपनी आवाज़ उठाये, हम वहीं तो हैं जिनकी गाड़ी पकड़े जाते ही जुर्माना लगने से पहले ही हम कहते हैं, ' साहब दो सौ रुपए लेकर रफा दफा कर दो।' फिर हम किस हक़ से सच बोलने का अधिकार रख सकते हैं।
बात जब बालमजदूरों की चलती हैं तो वह हम ही हैं जो कहते हैं कि, ' बालमजदूरी करवाने वालों को तो फासी पर चढ़ा देना चाहिए।' उसके अगले ही पल हम किसी छोटू से एक कप चाय मांग रहे होते हैं। तो किस हक़ से बाल मज़दूरी करवाने को हम फासी पर लटका सकते हैं।
आखिर किस हक़ से सच बोलने का अधिकार रख सकते हैं हम। किसी लड़की को अगर कोई राह चलते छेड़ भी दे तो क्या हम हिम्मत कर उसे रोकते हैं। कहीं कुछ गलत हो रहा है तो क्या उसका विरोध कर सकतें हैं। अगर करना भी चाहे तो किस हक़ से।क्युकि जब यह सब हो रहा होता है तो हम यही सोचते हैं कि हम क्यु, कोई और आकार बोलेगा! हम क्यू नहीं बोल सकते अगर नहीं बोल सकते तो हमें सच बोलने की आवश्यकता नहीं हैं। किस अधिकार से सच बोले, हमें तो सच्चाई का सामना करना ही नहीं आता।
आज मीडिया की ताकत से कहां से कहां पहुँच गई हैं, मगर क्या मीडिया हमेशा ईमानदारी से सच्चाई लोगों के सामने रखता हैं। यह वह मीडिया हैं जो सेलेब्रिटी की छींक से लेकर, उनके बच्चों के नैपी बदलने तक कि ख़बरें ब्रेकिंग न्यूज में दिखाता हैं। क्या मीडिया ने कभी हमारे देश के रियल हीरो, हमारे लिए सीमा पर अपनी जान गवाने वाले, हमारे जवान इनके बारे में कुछ भी दिखाया हैं। कभी दिखाया हैं आखिर वह किस हालातों में रहते हैं। जब कोई सैनिक सीमा पर शहीद होता हैं तो क्यु नहीं मीडिया यह खबर ब्रेकिंग न्यूज में दिखाती हैं। जब एक माँ का बीस साल का बेटा शहिद हो जाता हैं तो मीडिया जाकर देखती हैं उस माँ पर क्या बीत रही होती हैं, उसके घर वालों पर क्या बीत रही होती हैं। यही वो मीडिया हैं जो प्रियंका चोपड़ा की शादी की कवरेज एक घंटा दिखाकर अपना टीआरपी रेट बढ़ाता हैं और कसाब को बंदूक की नोक पर जिंदा पकड़ने वाले तुकाराम का हाल तक नहीं पूछती, क्या तब भी हमें सच बोलने की जरूरत नहीं हैं।
हा हमें सच बोलने की ज़रूरत हैं। अगर कहीं गलत हो रहा है तो उस गलत को गलत बोलने की ज़रूरत हैं, हमें सच बोलने की ज़रूरत हैं। सच को सच कहने की हिम्मत अगर नहीं हैं तो हमारा जीवन व्यर्थ हैं, हमारा जीना व्यर्थ हैं।
किस समाज में रह रहे हैं हम, जहां सच बोलना ही सबसे बड़ा अपराध बन गया है। मैं क्यू कोई और क्यू नहीं इसी सोच में हम गलत का विरोध करना तक भूल गए हैं। लेकिन हमें ज़रूरतों हैं कि कोई और कहें उससे पहले हम अपनी आवाज़ उठाये। कोई और नहीं सबसे पहले हम क्यु नहीं।
देखिए कुछ सोच कर। पहल छोटी सी ही सही अगर हम आगे बढ़ेंगे तो कारवा अपने आप बनता जाएगा।
' देर लगेगी मगर,
मंजिल मिलेगी जरूर,
लोग भी मिलेंगे,
करवा बनेगा जरूर....
सोचिएगा ज़रूर.......!
सच बोलने की आवश्यकता